मुझे इतना ना आजमा ऐ ज़िन्दगी
तेरी हर चाल से अब वाकीफ हुं मैं...
राहो मे बिखरे शोले भी अगर
उसपे चलने की अब हिंमत है मुझमे...
बरसाओ जितना कहर है तुझमे
बारिश मे जलता दिया हुं मैं...
ठान ली है मैने रोके ना रुकु
तुफान मै निकली कश्ती हुं मैं...
चाहो तो ले कडा इम्तिहान मेरा
तेरी हर सवाल का अब जवाब हुं मैं...
सुलह न होगी, अब होगी न हार
तेरी हर वार का हिसाब हुं मैं...
- मुक्त कलंदर© (प्रदिप काळे)